01

किंवदन्तियाँ

1925 में मैं ओक्लाहोमा गया था साँपों से जुड़ी किंवदन्तियाँ एकत्र करने। वहाँ से मैं साँपों के प्रति ऐसा भय मन में लेकर लौटा, जो जीवन भर मेरा पीछा नहीं छोड़ेगा। मैं मानता हूँ कि यह मूर्खता है, क्योंकि जो कुछ भी मैंने देखा और सुना, उन सबकी तार्किक व्याख्या दी जा सकती है, लेकिन फिर भी मेरा मन उस भय से उबर नहीं पा रहा है। अगर बात सिर्फ एक पुरानी कहानी की होती, तो मेरी यह हालत नहीं होती। एक अमरीकी—रेड-इण्डियन नृवंशविज्ञानी के रूप में अपने काम के दौरान मैं ऐसी अजीबो-गरीब किंवदन्तियाँ सुनने का आदि हो गया हूँ और मैं जानता हूँ कि बात अगर अजीबो-गरीब कल्पनाओं की हो, तो हम गोरी चमड़ी वाले लाल चमड़ी वाले रेड-इण्डियन को मीलों पीछे छोड़ सकते हैं। ...लेकिन मैंने वहाँ गुथरी के पागलखाने में अपनी आँखों से जो देखा, वह मैं कभी नहीं भूल सकता!

मैं उस पागलखाने में इसलिए गया था कि कुछ बुजुर्ग बासिन्दों ने मुझसे कहा था कि वहाँ मुझे कुछ महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी। दरअसल, सर्पदेवता से जुड़ी जिन किंवदन्तियों का मैं पता लगाना चाहता था, उन पर न तो वहाँ रहने वाले रेड-इण्डियन चर्चा करना चाह रहे थे और न ही गोरे लोग। बेशक, तेल की खोज में आने वाले नये लोग इस सम्बन्ध में कुछ नहीं जानते थे, लेकिन जो गोरे लोग वहाँ के पुराने बासिन्दे थे, वे और स्थानीय रेड-इण्डियन— मेरी जिज्ञासा सुनकर एकदम से भयभीत हो जाया करते थे। करीब छह-सात लोगों ने मुझसे उस पागलखाने का जिक्र किया और यह जिक्र उन्होंने बड़ी सावधानी के साथ फुसफुसाते हुए किया। साथ में उन लोगों ने यह भी जोड़ा कि डॉ. मैक’नील मुझे पुरा महत्व की कोई भयानक चीज दिखा सकते हैं और वो सब मुझे बता सकते हैं, जो मैं जानना चाहता हूँ। वे इस बात की भी व्याख्या कर देंगे कि क्यों मध्य ओक्लाहोमा में सरीसृपों के अर्द्धमानव पिता ‘यिग’ का इतना भय एवं आतंक व्याप्त है और क्यों यहाँ बाहर से आकर बसने वाले शरत काल के दिनों व रातों में सिहर उठते हैं, जब दूर कहीं रेड-इण्डियन की बस्तियों से वे नगाड़ों की लगातार ढम-ढम सुनते हैं! 

जैसे शिकारी कुत्ते को गन्ध मिल गयी हो, कुछ उस तरह से मैं जा पहुँचा गुथरी। मैं चूँकि बीते कई वर्षों से रेड-इण्डियन लोगों के बीच प्रचलित सरीसृप-पूजा की पद्धतियों में हो रहे बदलावों से सम्बन्धित तथ्यादि एकत्र कर रहा था, इसलिए किंवदन्तियों एवं पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर मेरा ऐसा पूर्ण विश्वास था कि महान सर्पदेवता क्वेजलकोट्ल— मेक्सिकन लोगों (एज्टेक सभ्यता) के दयालु सर्पदेवता— से भी प्राचीन एवं अज्ञात एक सर्पदेवता का अस्तित्व जरूर होगा। हाल के महीनों में ग्वाटेमाला से लेकर ओक्लाहोमा तक के मैदानी इलाकों में अपनी शोध की शृंखला के दौरान मैं उक्त विश्वास के काफी निकट पहुँच चुका था, लेकिन अभी भी सब कुछ उलझा हुआ और अधूरा था। कारण वही— स्थानीय लोगों में व्याप्त सर्प-सम्बन्धी भय एवं गोपनीयता।

अब मुझे मेरी शोध के लिए प्रचुर मात्रा में नये तथ्यादि मिलने की सम्भावना नजर आयी और सच तो यह है कि पागलखाने के प्रमुख से मिलते समय मैंने अपनी उत्सुकता को दबाने की कोशिश भी नहीं की। डॉ. मैक’नील अधेड़ उम्र और नाटे कद के क्लीन-शेव्ड सज्जन थे। उनकी बातचीत एवं व्यवहार से जल्दी ही मैं समझ गया कि अपने पेशे से बाहर की चीजों के बारे वे कोई खास जानकारी नहीं रखते थे। जब मैंने यहाँ आने के अपने उद्देश्य के बारे में बताया, तो उनका चेहरा एकबारगी गम्भीर हो गया और उन्होंने सन्देह भरी निगाहों से मुझे देखा। फिर उन्होंने बड़े गौर से शोधकार्य सम्बन्धी मेरे कागजातों और उस पत्र का निरीक्षण किया, जो एक पूर्व इण्डियन एजेण्ट[1] ने मुझे दिया था।

“अच्छा, तो आप यिग की किंवदन्तियों पर शोध कर रहे हैं— क्यों?” उन्होंने प्रतिक्रिया दी— लगा कि मुझ पर उन्हें भरोसा हुआ था।

“मैं जानता हूँ कि— ” उन्होंने कहना जारी रखा, “—ओक्लाहोमा के कई नृवंशविज्ञानियों ने यिग को क्वेजलकोट्ल से जोड़ने की कोशिश की है, पर मुझे नहीं लगता कि उनमें से कोई बीच की खोयी हुई कड़ियों को जोड़ पाने में सफल हो पाया है। अपनी युवा उम्र के लिहाज से आपका काम बहुत बढ़िया है और इसलिए मेरे पास जो भी जानकारियाँ हैं, वो मैं आपको दूँगा।

“जहाँ तक मेरा अनुमान है, बूढ़े मेजर मूर ने या किसी और ने भी आपको यह नहीं बताया होगा कि यहाँ मेरे पास क्या रखा हुआ है। वे इसके बारे में बात करना पसन्द नहीं करते— पसन्द तो खैर, मैं भी नहीं करता हूँ। असल में, सारा मामला बहुत दर्दनाक और बहुत ही भयानक है, लेकिन जो है, तो है। मैं इसे परालौकिक नहीं मानता हूँ। इसके पीछे एक लम्बी कहानी है, वह मैं आपको बाद में सुनाऊँगा— उसे देखने के बाद। यह एक शैतानी दुखान्त कहानी है, लेकिन मैं इसे जादू नहीं मानता। यह विश्वास की पराकाष्ठा का परिणाम है। मैं मानता हूँ कि कभी-कभी मेरा शरीर ही नहीं, आत्मा तक सिहर उठती है उसे देखकर, लेकिन बाद में मैं मानकर चलता हूँ कि यह मेरी स्नायुदुर्बलता होगी। अफसोस कि अब मैं कोई नौजवान तो रहा नहीं!

“सीधे-सीधे कहूँ, तो मेरे पास जो चीज है, उसे आप यिग के अभिशाप का शिकार कह सकते हैं— एक जीता-जागता शिकार! मैं नर्सों को उसे देखने भी नहीं देता हूँ, हालाँकि उनमें से ज्यादातर उसके बारे में जानती हैं। केवल दो पुराने और विश्वस्त लोग हैं, जो उसे भोजन देते हैं और उसके केबिन की साफ-सफाई करते हैं— पहले तीन थे, लेकिन बूढ़े स्टिवेन्स बेचारे का कुछ वर्षों पहले देहान्त हो गया। मुझे लगता है कि जल्दी ही उसकी देखभाल के लिए मुझे युवा लोगों का एक नया दल तैयार करना पड़ेगा, क्योंकि उस जीव की न तो उम्र बढ़ती हुई नजर आ रही है और न ही उसमें कोई शारीरिक बदलाव आ रहा है— और हम पुराने लोग तो हमेशा के लिए रहेंगे नहीं! हो सकता है कि निकट भविष्य में नीति का पालन करते हुए हमें उसे कैद से छोड़ना पड़े— वैसे, अभी कुछ कह पाना मुश्किल है।

“यहाँ आते समय भवन के पूर्वी हिस्से में जमीन से लगी बेसमेण्ट की शीशे वाली खिड़की पर ध्यान गया था आपका? वह वहीं पर है। अभी मैं खुद आपको वहाँ ले चलूँगा। कोई टोका-टाकी नहीं कीजिएगा, बस दरवाजे पर लगे पैनल को सरकाकर देख लीजिएगा और ईश्वर को धन्यवाद दीजिए कि अभी दिन की रोशनी कम हो गयी है। इसके बाद मैं आपको वह कहानी सुनाऊँगा— कहने का मतलब, जितना मैं जान पाया हूँ, उतना।”



[1] उन दिनों अमेरिका में सरकार की ओर से ऐसे अधिकारी नियुक्त किये जाते थे, जो गोरों की ओर से रेड-इण्डियन लोगों के साथ सम्पर्क रखते थे, इन्हें ‘इण्डियन एजेण्ट’ कहा जाता था।  

Write a comment ...

Write a comment ...