हम लोग चुपचाप सीढ़ियों से नीचे उतरे। बिना एक शब्द बोले हम निर्जन बेसमेण्ट के टेढ़े-मेढ़े गलियारों से गुजरने लगे। डॉ. मैक’नील ने भूरे रंग के एक लोहे के दरवाजे को खोला, लेकिन यह एक अतिरिक्त दरवाजा था। कुछ दूर और चलने के बाद वे एक दरवाजे के सामने रूके, जिस पर B 116 लिखा हुआ था। पंजों पर खड़े होकर उन्होंने दरवाजे पर बने पैनल को सरकाया और लोहे के दरवाजे को उँगली से कई बार ठकठकाया, जैसे कि अन्दर रहने वाले को— चाहे वह जो भी हो— वे जगाना चाह रहे हों।
डॉक्टर ने जब पैनल को सरकाया, तो हल्की-सी एक बदबू बाहर आयी थी और मुझे ताज्जुब हुआ कि उनकी ठकठकाहट के प्रत्युत्तर में अन्दर से क्षीण हिस्स की आवाज सुनायी पड़ी। अन्त में, उन्होंने मुझे ईशारा किया कि मैं उनकी जगह पर खड़े होकर अन्दर झाँकूँ। बिना किसी कारण के बुरी तरह डरते हुए मैंने ऐसा ही किया। दूसरी तरफ जमीन की सतह से सटी शीशे की खिड़की से बहुत ही मद्धम पीली रोशनी अन्दर आ रही थी और मुझे उस बदबूदार कमरे में कई सेकेण्ड तक नजरें इधर-उधर दौड़ानी पड़ीं— फूस से ढके फर्श पर रेंगती और ऐंठती हुई उस चीज को देखने से पहले, जो रह-रहकर क्षीण स्वर हिस्स-हिस्स की आवाज पैदा कर रही थी। धीरे-धीरे उस चीज की आकृति मेरी निगाहों में स्पष्ट हुई और मुझे ऐसा लगा कि रेंगती हुई यह आकृति कुछ हद तक इन्सानों-जैसी थी, जो पेट के बल लेटी हुई थी! मैंने सहारे के लिए दरवाजे के हैण्डल को जोर से थाम लिया, क्योंकि मुझे चक्कर आ गया था।
वह रेंगती हुई चीज इन्सानी आकार-प्रकार की थी— पूरी तरह निर्वस्त्र। शरीर पर कहीं बाल नहीं थे, जबकि उसकी पीठ पर पीलापन लिये भूरे रंग के शल्क कमरे की मद्धम रोशनी में साफ नजर आ रहे थे। कन्धों पर भूरे धब्बे थे और सिर विचित्र ढंग से सपाट था। जब उसने मुझ पर फुंफकारने के लिए सिर उठाया, तो मैंने उसकी छोटी-छोटी काली आँखों को देखा, जो लगीं तो इन्सानी आँखों जैसी ही, लेकिन मुझमें ध्यान से देखने का साहस नहीं था। उन आँखों की डरावनी निगाहें मुझ पर एकटक जमी हुई थी। मैंने हाँफते हुए पैनल को बन्द कर दिया। मनुष्य और साँप के मिले-जुले रंग-रूप वाले उस प्राणी को एक छोटे कमरे की भूतिया रोशनी में फर्श पर पड़े फूस पर रेंगते और ऐंठते हुए देर तक देख पाना मेरे लिए सम्भव नहीं था। मेरे कदम जरूर लड़खड़ा गये थे, क्योंकि डॉक्टर ने नर्मी के साथ मेरी बाँह को थामा और मुझे लेकर वहाँ से लौटने लगे। मैं लड़खड़ाती जुबान से बार-बार दुहरा रहा था, “भ- भगवान के लिए... यह क्या था?”
जब उन्होंने मुझे यिग और उस जीव की कहानी सुनायी, तब मैं डॉ. मैक’नील के व्यक्तिगत दफ्तर में उनके सामने एक आरामकुर्सी पर हाथ-पाँव फैलाये पसरा हुआ था। दोपहर बाद की सुनहरी धूप ढलकर बैंगनी गोधूली में बदल गयी, लेकिन मैं मुँह बाये बिल्कुल निश्चल होकर कहानी सुनता रहा। मैं टेलीफोन और बजर की प्रत्येक घण्टी पर झल्ला रहा था और बीच-बीच में डॉक्टर को उनके बाहर वाले दफ्तर में थोड़ी-थोड़ी देर के लिए बुलाने वाली नर्सों और इनटर्न पर कुढ़ रहा था— मन कर रहा था कि काश, मैं उन्हें श्राप दे सकता! रात हुई और मुझे खुशी हुई यह देखकर कि मेरे मेजबान ने सारी बत्तियाँ रोशन कर दीं। हालाँकि मैं एक वैज्ञानिक था, लेकिन इस रोमांचक कहानी को सुनते हुए मारे उत्तेजना के मेरी हालत ऐसी हो गयी थी कि अपनी शोध की बात मैं लगभग भूल ही गया था। मेरी हालत उस बच्चे-जैसी हो गयी थी, जिसे चिमनी के एक कोने में बैठाकर कोई फुसफुसाते स्वर में चुड़ैलों की कहानी सुना रहा हो!
Write a comment ...