डॉक्टर ने कहानी शुरू की—
मध्य भाग के मैदानों में रहने वाली जनजातियों के सर्पदेवता हैं यिग। अनुमान है कि दक्षिणी भाग में सर्पदेवता माने जाने क्वेजलकोट्ल या कुकुल्कान के ये आदिपुरूष हैं। यिग एक अर्द्धमानव देवता हैं, जो स्वभाव से स्वेच्छाचारी और सनकी हैं। हालाँकि ये पूरी तरह से दुष्ट या शैतान नहीं हैं, बल्कि जो लोग इन्हें और इनकी सन्तानों— सरीसृपों— को उचित सम्मान देते हैं, उनके प्रति इसका व्यवहार अच्छा होता है, लेकिन शरत काल में ये भयानक रूप से भूखे हो जाते हैं और तब तरह-तरह के विधि-विधानों से इन्हें दूर रखा जाता है। इसी कारण से पॉवनी, विचिता और कैडो जनजातियों के कबीलों से अगस्त, सितम्बर और अक्तूबर के महीनों में हफ्तों तक नगाड़ों के ढम-ढम की आवाजें सुनायी पड़ती हैं। उस दौरान उनके ओझा लोग डरावने स्वर में इस तरह से मंत्रपाठ करते हैं कि देखकर एकबारगी प्राचीन एज्टेक और माया सभ्यता के दौर में पहुँच जाने का अहसास हो जाय!
Write a comment ...